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कैसे भ्रष्टाचार से होता है आम आदमी को नुकसान?
Created on: 06 January 2025
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भ्रष्टाचार कोई नया शब्द नहीं है। यह हमारे समाज की एक गहरी जड़ जमाई हुई बीमारी है, जो न केवल सरकारी संस्थानों को खोखला करती है, बल्कि आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी पर भी सीधा असर डालती है। लेकिन सवाल यह है – आख़िर एक साधारण इंसान को इससे क्या नुकसान होता है? इस ब्लॉग में हम सरल भाषा में समझेंगे कि कैसे भ्रष्टाचार आम जनता के हक को छीनता है।
1. सरकारी सेवाएं मिलती हैं देर से या मिलती ही नहीं
आम आदमी को अगर कोई सरकारी काम करवाना हो – जैसे राशन कार्ड बनवाना, पेंशन लेना, या अस्पताल में इलाज कराना – तो भ्रष्टाचार की वजह से काम में बेवजह देरी होती है। कई बार बिना "घूस" दिए काम होता ही नहीं। इससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को सबसे ज़्यादा परेशानी होती है।
2. घटिया गुणवत्ता वाली चीजें मिलती हैं
सरकारी योजनाओं में पैसा तो पास होता है, लेकिन भ्रष्ट अफसर और ठेकेदार उसका बड़ा हिस्सा खा जाते हैं। नतीजा – स्कूल में घटिया मिड-डे मील, टूटी सड़कें, अधूरे अस्पताल और खराब दवाइयाँ। आम आदमी को उसकी मेहनत की कमाई का पूरा फायदा नहीं मिलता।
3. महंगाई और टैक्स का बोझ बढ़ता है
जब सरकारी पैसे का दुरुपयोग होता है, तो सरकार को घाटा होता है। उसकी भरपाई करने के लिए या तो टैक्स बढ़ाया जाता है या सब्सिडी कम कर दी जाती है। यानी भ्रष्टाचार का सीधा असर जनता की जेब पर पड़ता है।
4. योग्य लोगों को नहीं मिलती नौकरियाँ
जब सरकारी नौकरियों में रिश्वत और सिफारिश का बोलबाला हो, तब मेहनती और योग्य लोग पीछे रह जाते हैं। ऐसे में योग्यता से ज़्यादा पैसे और जान-पहचान मायने रखने लगती है। इससे युवा पीढ़ी में निराशा फैलती है।
5. न्याय में देरी और अविश्वास
अगर किसी आम आदमी को न्याय चाहिए, तो कोर्ट-कचहरी में भी भ्रष्टाचार आड़े आ सकता है। केस सालों तक लटकता है और कई बार पैसे वालों को फायदा मिल जाता है। इससे आम इंसान का कानून पर से भरोसा उठने लगता है।
निष्कर्ष
भ्रष्टाचार कोई दूर की चीज़ नहीं है – यह हमारे आसपास है, और इसका नुकसान सबसे ज़्यादा आम आदमी को ही होता है। जब एक साधारण व्यक्ति को उसके अधिकार, सुविधाएँ और न्याय नहीं मिल पाता, तो यह केवल सिस्टम की नहीं, समाज की भी हार है।
हमें मिलकर यह सोचना होगा – क्या हम भी किसी न किसी रूप में इसे बढ़ावा तो नहीं दे रहे? और अगर हाँ, तो समय आ गया है कि हम बोलें – "नहीं, अब और नहीं!"
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